वायगोत्स्की और कोहलबर्ग का सिद्धांत: सामाजिक, नैतिक विकास और तुलना
वायगोत्स्की और कोहलबर्ग का सिद्धांत: सामाजिक, नैतिक विकास और तुलना
पिछली पोस्ट में हमने जाना कि जीन पियाजे के अनुसार बच्चा अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं कैसे करता है। लेकिन क्या इस प्रक्रिया में हमारे समाज, हमारी संस्कृति और हमारे नैतिक मूल्यों की कोई भूमिका है? इसी महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर हमें दो अन्य महान मनोवैज्ञानिकों - लेव वायगोत्स्की (Lev Vygotsky) और लॉरेंस कोहलबर्ग (Lawrence Kohlberg) के सिद्धांतों में मिलता है।
M.S.WORLD The World of HOPE में आपका स्वागत है! आज के इस लेख में हम बाल विकास के दो सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों को समझेंगे। हम जानेंगे कि वायगोत्स्की के अनुसार हमारा सामाजिक वातावरण हमारी सोच को कैसे आकार देता है, और कोहलबर्ग के अनुसार हमारे सही-गलत के निर्णय समय के साथ कैसे विकसित होते हैं।
भाग 1: लेव वायगोत्स्की का सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत
रूस के मनोवैज्ञानिक लेव वायगोत्स्की का मानना था कि बच्चे का संज्ञानात्मक विकास अकेले नहीं होता, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक अंतःक्रिया (Social and Cultural Interaction) के माध्यम से होता है। उनके अनुसार, हमारा ज्ञान हमारे समाज और संस्कृति की देन है।
वायगोत्स्की के सिद्धांत की तीन महत्वपूर्ण अवधारणाएं
- अधिक जानकार अन्य (More Knowledgeable Other - MKO): MKO कोई भी व्यक्ति हो सकता है जिसे सीखने वाले की तुलना में किसी विशेष कार्य के बारे में अधिक ज्ञान या कौशल हो। यह एक शिक्षक, माता-पिता, या सहपाठी भी हो सकता है।
- संभावित विकास का क्षेत्र (Zone of Proximal Development - ZPD): ZPD एक बच्चे के द्वारा बिना किसी मदद के किए जा सकने वाले कार्य और किसी MKO की मदद से किए जा सकने वाले कार्य के बीच का अंतर है। वायगोत्स्की के अनुसार, यही वह "जादुई क्षेत्र" है जहाँ सीखना सबसे प्रभावी ढंग से होता है।
- पाड़/मचान (Scaffolding): यह MKO द्वारा दी जाने वाली वह अस्थायी मदद या मार्गदर्शन है जो बच्चे को ZPD में सीखने में सक्षम बनाती है। जैसे ही बच्चा सीखने लगता है, यह मदद धीरे-धीरे हटा ली जाती है। उदाहरण: जब एक पिता अपने बच्चे को साइकिल चलाना सिखाता है, तो वह पहले पीछे से साइकिल पकड़ता है (यह Scaffolding है)। जैसे ही बच्चा संतुलन बनाना सीख जाता है, पिता साइकिल छोड़ देता है।
🧠 अभ्यास प्रश्न 1: एक शिक्षिका एक बच्ची को किसी सवाल को हल करने में मदद करने के लिए उसे कुछ शुरुआती संकेत और इशारे देती है। वायगोत्स्की के सिद्धांत के अनुसार, यह रणनीति क्या कहलाती है?
(A) ZPD
(B) MKO
(C) पाड़ (Scaffolding)
(D) आत्मसात्करण
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उत्तर: (C) पाड़ (Scaffolding)
विवरण: शिक्षिका द्वारा दी गई अस्थायी मदद पाड़ या मचान का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
वायगोत्स्की के सिद्धांत का शैक्षिक महत्व
वायगोत्स्की का सिद्धांत कक्षा में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को देखने का एक नया नजरिया देता है:
- सहकारी अधिगम (Cooperative Learning): यह सिद्धांत बताता है कि बच्चे समूहों में काम करके एक-दूसरे से बेहतर सीखते हैं। शिक्षक को छात्रों को एक साथ मिलकर समस्याओं को हल करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
- शिक्षक की भूमिका: शिक्षक को एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए जो छात्रों को सही समय पर सही मदद (Scaffolding) प्रदान करे।
- भाषा का महत्व: वायगोत्स्की के अनुसार, भाषा सोच का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। कक्षा में बातचीत, चर्चा और संवाद को बढ़ावा देना चाहिए।
भाग 2: लॉरेंस कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत
अमेरिका के मनोवैज्ञानिक लॉरेंस कोहलबर्ग ने यह समझाया कि समय के साथ बच्चों और वयस्कों की सही और गलत (नैतिकता) के बारे में सोचने की प्रक्रिया कैसे विकसित होती है। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध "हिंज दुविधा" (Heinz Dilemma) जैसी कहानियों के आधार पर नैतिक विकास के तीन स्तर और छह चरण दिए।
कोहलबर्ग के 3 स्तर और 6 चरण
स्तर 1: पूर्व-परंपरागत नैतिकता (Pre-Conventional Morality)
(आयु: लगभग 4-10 वर्ष) इस स्तर पर नैतिकता बाहरी घटनाओं (जैसे दंड या पुरस्कार) पर आधारित होती है।
- चरण 1: आज्ञा और दंड अभिविन्यास: बच्चा नियमों का पालन इसलिए करता है ताकि उसे दंड न मिले। ("मैं चोरी नहीं करूँगा क्योंकि मुझे मार पड़ेगी।")
- चरण 2: साधनात्मक सापेक्षवादी अभिविन्यास: बच्चा सोचता है, "तुम मेरे लिए कुछ करो, तो मैं तुम्हारे लिए कुछ करूँगा।" (लेन-देन की नैतिकता)।
स्तर 2: परंपरागत नैतिकता (Conventional Morality)
(आयु: लगभग 10-13 वर्ष) इस स्तर पर नैतिकता सामाजिक नियमों और अपेक्षाओं पर आधारित होती है।
- चरण 3: अच्छा लड़का-अच्छी लड़की अभिविन्यास: बच्चा सामाजिक स्वीकृति पाने और दूसरों को खुश करने के लिए अच्छा व्यवहार करता है। ("मैं सच बोलूंगा ताकि मेरे माता-पिता मुझ पर गर्व करें।")
- चरण 4: कानून और व्यवस्था अभिविन्यास: व्यक्ति समाज के नियमों और कानूनों का पालन करना अपना कर्तव्य समझता है। ("चोरी करना गलत है क्योंकि यह कानून के खिलाफ है।")
स्तर 3: उत्तर-परंपरागत नैतिकता (Post-Conventional Morality)
(आयु: 13 वर्ष से अधिक) इस स्तर पर व्यक्ति अपनी नैतिकता का आधार स्वयं के विवेक और सार्वभौमिक सिद्धांतों को बनाता है।
- चरण 5: सामाजिक अनुबंध अभिविन्यास: व्यक्ति मानता है कि कानून समाज की भलाई के लिए हैं, लेकिन यदि वे मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं तो उन्हें बदला जा सकता है।
- चरण 6: सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत अभिविन्यास: व्यक्ति अपने स्वयं के सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों (जैसे न्याय, समानता, जीवन का सम्मान) के आधार पर निर्णय लेता है, जो कानून से भी ऊपर हो सकते हैं।
आपके लिए मुख्य बिंदु: परीक्षा में अक्सर एक स्थिति देकर पूछा जाता है कि यह कोहलबर्ग के किस चरण का उदाहरण है। इसलिए हर चरण के मूल विचार को समझना महत्वपूर्ण है।
🧠 अभ्यास प्रश्न 2: कोहलबर्ग की प्रसिद्ध "हिंज दुविधा" में, एक बच्चा तर्क देता है कि हिंज को दवा चुरानी नहीं चाहिए थी क्योंकि "चोरी करना कानून के खिलाफ है और उसे जेल हो जाएगी"। यह बच्चा नैतिक विकास के किस चरण में है?
(A) चरण 1: आज्ञा और दंड
(B) चरण 3: अच्छा लड़का-अच्छी लड़की
(C) चरण 4: कानून और व्यवस्था
(D) चरण 6: सार्वभौमिक सिद्धांत
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उत्तर: (C) चरण 4: कानून और व्यवस्था
विवरण: बच्चा समाज के कानून को अंतिम और सर्वोपरि मान रहा है, जो इस चरण की विशेषता है।
कोहलबर्ग के सिद्धांत का शैक्षिक महत्व
- नैतिक चर्चाओं का आयोजन: शिक्षक कक्षा में नैतिक दुविधाओं वाली कहानियों पर चर्चा आयोजित कर सकते हैं, जिससे छात्रों को विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने का मौका मिलता है।
- चरित्र निर्माण: यह सिद्धांत शिक्षकों को यह समझने में मदद करता है कि बच्चों में नैतिक मूल्यों जैसे ईमानदारी, न्याय और सहयोग का विकास कैसे करें।
पियाजे, वायगोत्स्की और कोहलबर्ग: एक तुलनात्मक दृष्टि
आधार | जीन पियाजे | लेव वायगोत्स्की | लॉरेंस कोहलबर्ग |
---|---|---|---|
मुख्य फोकस | संज्ञानात्मक विकास | सामाजिक-सांस्कृतिक विकास | नैतिक विकास |
विकास का कारण | बच्चा स्वयं ज्ञान का निर्माता है (व्यक्तिगत प्रक्रिया)। | समाज और संस्कृति से अंतःक्रिया के माध्यम से। | नैतिक दुविधाओं पर चिंतन के माध्यम से। |
भाषा की भूमिका | विचार भाषा से पहले आते हैं। | भाषा और विचार साथ-साथ चलते हैं और भाषा सोच का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। | नैतिक तर्क को व्यक्त करने का माध्यम। |
अवस्थाएं | विकास की 4 निश्चित अवस्थाएं दी हैं। (यहाँ और पढ़ें) | विकास की कोई निश्चित अवस्था नहीं बताई। | नैतिक विकास के 3 स्तर और 6 चरण दिए हैं। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न: कोहलबर्ग के सिद्धांत की मुख्य आलोचना किसने और क्यों की?
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उत्तर: इनकी मुख्य आलोचना उनकी अपनी छात्रा कैरल गिलिगन ने की थी। गिलिगन का तर्क था कि कोहलबर्ग का सिद्धांत पुरुषों के न्याय-आधारित नैतिक तर्क पर केंद्रित है और इसमें महिलाओं के देखभाल-आधारित (Ethic of Care) नैतिक चिंतन की अवहेलना की गई है।
प्रश्न: पियाजे और वायगोत्स्की में मुख्य अंतर क्या है?
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उत्तर: सबसे बड़ा अंतर यह है कि पियाजे ने विकास को एक जैविक और व्यक्तिगत प्रक्रिया माना (पहले विकास, फिर सीखना), जबकि वायगोत्स्की ने सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों को विकास के लिए केंद्रीय माना (सीखना विकास को आगे बढ़ाता है)।
निष्कर्ष
पियाजे, वायगोत्स्की और कोहलबर्ग, ये तीनों ही बाल विकास के आधार स्तंभ हैं। जहाँ पियाजे हमें बच्चे की आंतरिक संज्ञानात्मक दुनिया की यात्रा पर ले जाते हैं, वहीं वायगोत्स्की हमें याद दिलाते हैं कि कोई भी बच्चा एक द्वीप नहीं है - उसका विकास समाज और संस्कृति के ताने-बाने में बुना होता है। और कोहलबर्ग हमें यह समझने में मदद करते हैं कि एक बच्चा सही और गलत के बीच निर्णय लेने की जटिल प्रक्रिया को कैसे सीखता है।
एक शिक्षक के रूप में इन तीनों दृष्टिकोणों की समझ होना आपको एक अधिक प्रभावी और सहानुभूतिपूर्ण मार्गदर्शक बनाता है।
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